कश्मीरी पंडितों के फेसबुक पेज पर अपनी संवेदनाएं भी व्यक्त कर रहे मेरठ में रह रहे कश्मीरी लोग

 मेरठ।  आज के ही दिन श्रीनगर के हब्बा कादल के पास हवेली वीरान हो गई थी। दादा-दादी और चाचा ताऊ को परिवार सहित घर छोड़ना पड़ा था। लालकुर्ती थाने के पास सुनसान पुरानी सी हवेली के बगीचे में रविवार को विमला शिवपुरी हाथों में कंडील लिए श्रीनगर की अपनी स्मृतियों की आंच को महसूस कर रहीं थीं। 


वैश्विक प्रवासी कश्मीरी संगठन ने 19 जनवरी को जनसंहार दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की है। कहा कि यहां कश्मीरी पंडितों के कुछ ही परिवार हैं, इसलिए कोई संगठन नहीं है, लेकिन फेसबुक पर कश्मीरी पंडितों के पेज पर वे देशभर के लोगों के साथ अपनी संवेदनाएं व्यक्त कर रही हैं। उन्होंने जम्मू और दिल्ली में शरणार्थी शिविरों में कश्मीरी पंडितों की बदतर जिंदगी का हवाला देते हुए कहा कि 30 वर्ष बीत चुके हैं। अब मोदी सरकार को विस्थापितों की पनुन कश्मीर (अपना कश्मीर) की मांग को पूरा करना चाहिए। बतातें चलें विस्थापित कश्मीर पंडित कश्मीर में अलग भू-भाग पर बसाने की मांग कर रहे हैं।


एक अटैची लेकर भागे थे मामा : विमला के पिता अमरनाथ काफी समय पहले ही श्रीनगर छोड़कर राजस्थान बस गए थे। चूंकि दादा दादी और चाचा ताऊ और उनका परिवार वहीं रहता था, इसलिए हमेशा उनका आना-जाना बन रहता था। विमला ने बताया कि उनकी मौसी जयश्री कौल और मौसा जगन्नाथ कौल को सब कुछ छोड़ कर रातों रात 19 जनवरी 1990 में श्रीनगर के करन नगर से भागना पड़ा था। वहां से वे सीधे मेरठ उनके पास आए थे। दो-ढाई माह वह यहीं पर रुके। श्रीनगर के वरजुला बगान में रहने वाले मामा श्यामलाल को अपनी विधवा बहू को लेकर उसी दिन घर छोड़ना पड़ा था। उस मंजर को याद कर उनकी आंखे भीग जाती हैं। कहती हैं पता नहीं अचानक क्या हो गया कि पीढ़ियों से साथ रहने वाले इस कदर हैवानियत पर उतर आए। उन्होंने कहा कि सैकड़ों कश्मीरी ¨हसा का शिकार हुए और जान गंवानी पड़ी।